राह देख रही है कब से ये धरती
सह रही है सूरज की ये भी गर्मी
बादल दिखलायेगा कब अब नरमी
हरी-भरी कब होगी पेड़ों की टहनी
शुद्ध वातावरण कब हो पाएगा
गर्म हवा नम कब हो जाएगा
तन को आग जैसी जलन से
राहत जन को कब मिल पाएगा
जलमग्न कब होगी नदियाँ सूखी
खुश्बू हवा की कब होगी सौंधी
पेड़ो की डालो पर झूला कब होगी
फसल लहलहाती खेतों में कब होगी
पंख फैलाए मोर कब नाचेंगे
इन्द्रधनुष नभ में कब आएंगे
प्रेम-गीत गाने को आतुर
प्रेमी बारिश में कब भींग पाएंगे
बहुत सुंदर ……………………लिंग भेद प्रयोग पर ध्यान आवश्यक है, !!
शुक्रिया निवातिया जी🙏