बरस रही बूँदें छम छम छाए बदरा कारे कारे पिया मिलन को जाए बिजुरिया धरती बैठी माँग सँवारे बोले पपीहा महके तन मन चटखें कलियाँ बेला की कोमल चलें कभी जो ठँडी हवाएँ लहराएँ आँचल केश उड़ाएँ सखी चँचल जैसे कोई खेल रचाय मुसकाए रात की रानी भी भीनी भीनी सुगन्ध फैलाए पीहू पीहू की मधुर स्वर लहरी गूँजे वन में तान सुनाए बरस रही बूँदें छम छम कारे कारे बदरा छाए दूर कहीं नज़र जो घूमी नाचें मोर पँख फैलाए विभोर हुए मेरे चँचल नैना कैसे कैसे दृष्य दिखाए कलाकार की कला निराली हर पल नए चित्र बनाए शत शत नमन उस कारीगर को धरती आसमाँ जिसने बनाए छम छम बरसें नन्हीं बूँदें कारे कारे बदरा छाए
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बहुत सुंदर रचना👌
Bahut 2 Dhanyawad vijay ji
अप्रतिम, ………………… मनभावन रचना………………….. आदरणीया किरन कपूर गुलाटी जी, ………………….लम्बे अंतराल के बाद रसास्वादन करने को मिला आपकी रचन का …………………..अपना मेल आई डी या व्हाट्सप्प साझा कीजिये यदि संभव हो सके तो !
Nivatiya JI sarahna ke liye bahut 2 dhanyawad , bahut dinon ke bad Kalam uthane ka dil kiya , shayad mood hi nahi bana, aur aap to khud bhi likhte hain aur jante hain shabd tabhee judte hain jab bhav utpan hote hain .Email to purana wala hi hai what’s aap par main hoon hi nahi .