तुम सयाने हो गए हो अब समझ आने लगा आईना हमको तुम्हारे सच को दिखलाने लगा जिंदगी रूकती कहां है हो गया सो हो गया अब हमें खुद का तजुर्बा आ ये समझाने लगा ना कोई रिश्ता पुराना ना कोई है दोस्ती अब तेरा अंदाज हमको बस ये झलकाने लगा क्या ठिकाना मेघ का जो वक्त के संग उड़ चला वो तो खुद को गैर का बन आज बरसाने लगा फूल की है क्या खता है ये ही उसकी जिंदगी हो गया वो साथ जिसके उसको महकाने लगा शिशिर मधुकर
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बहुत बढ़िया शिशिर जी
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji
अति सुन्दर रचना जी
Tahe dil se shukriya aapkaa