कब हम गन्दा गंगा करेंगेकब हम दूषित हवा करेंगेकब हम सबसे झगड़ा करेंगेकब सड़क पर कचड़ा करेंगेकब यहाँ-वहाँ पर हम थूकेंगेकब शोरगुल के गीत बजेंगेकब खुले में सब शौच करेंगेकब पीकर नग्न रास्ते पड़ेंगेकब लड़कियों के पीछे घूमेंगेकब शिक्षक को तंग करेंगेकब बस-ट्रेनों को हम फूकेंगेकब धरना-प्रदर्शन हम करेंगेकब तक घर मे कैद रहेंगेकब तक बड़ो का बात सुनेंगेअब यदि जल्दी छूट न मिलेंगेफिर नियम लॉकडाउन तोड़ेंगे
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अच्छा व्यंग्य है विजय जी
शुक्रिया देवेश जी।
अति सुंदर भावपक्ष यदि सकारत्मक विचराभिव्यक्ति की और होता तो ज्यादा प्रभावपूर्ण रचना होती !
धन्यवाद निवातिया जी।