बंदिशें इतनी लगी हैं आ गई है जान पे कोई भी काबू नहीं कर पा रहा शैतान पे औरों की सोची नहीं अपना हित साधन किया मिल के अब तो हो चढ़ाई इस बड़े हैवान पे क्या मिला कोरोना जैसे वायरस को छोड़ के कर रहा है हमले ये तो नित नए अनजान पे है पुरानी बात पर है आज भी बिलकुल सही आके मुंह पे ही गिरेगा जो थूकोगे आसमान पे गैर और अपने सभी चोटिल सदा होंगे सुनो क्यों भरोसा कर रहे इंसानों तुम तूफ़ान पे शिशिर मधुकर
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बेहतरीन
Tahe dil se shukriya …
vvery intreting all poem i want to read all poem in you tube chanale
Dhanyavaad
सुन्दर शब्दों का प्रयोग
Shukriya janaab