माना कठिन समय है इंसान डर रहा है तेरी याद के सहारे हर दिन गुजर रहा है ना शोर है कहीं अब बैठे हैं सब घरो में हर चीज में अक्स इक तेरा उभर रहा है अपनी भी कुछ बताओ करते हो आजकल क्या क्या पहले जैसे चेहरा अब भी निखर रहा है मैंने तो जो लिखा है सोचा तुम्हें बता दूं हर इक लफ़्ज मेरा तेरी नजर रहा है जब से मिले मुझे तुम कब होश में रहा मैं मधुकर के हर कदम पे तेरा असर रहा है शिशिर मधुकर
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Nice
Thanks
बहुत बढ़िया कविता लिखी है मधुकर जी आपने
Dhanyavaad