यूं तो हसीं हैं लाख पर तुझ सा ना कोई है तुझसे मिलन की आस फकत मैंने संजोई है ये मेरी गजल देख लो कुछ भी नहीं है बस तेरी यादों के रत्नों की फकत माला पिरोई है तुम आ गए थे साथ में किस्मत ही खुल गई जब से गए हो दूर लगे कब से ये सोई है ए मेरी जिन्दगी तुझे कैसे कहूं बता मुस्कान मेरे मुख से यहां मुद्दत से खोई है दुनिया को अपने साथ से नफरत थी हर घड़ी मधुकर तभी तो तेरी छवि जल में बिलोई है शिशिर मधुकर
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👍👍👏 bahut badhiya Shishir ji
Dhanyavaad