कर दो एलान कि जिंदा नहीं है हमजिंदगी में अपने न कोई है अब रंग जिंदगी के कोरे कागज परआंसुओं से लिखे जा रहे हैं हमबेगाने हो गए अपनो में हममहफ़िल में भी अकेले है हमदामन में अपने है बस गमपल खुशी के देखे नही है हमइबादत खुदा की करते रहे है हममेरा खुदा मुझपर किये जा रहा सितम इम्तिहान और कितना देते रहेंगे हमसब्र की अब रोशनी होती जा रही है कमदर्द के दरिया में डूबे हुए है हमबेकार हुए साहिल पर पहुँचने के जतनशहंशाह मुफलिसी के हो गए है हमबेकरार हूँ चैन की ओढूं अब कफ़न By:-VIJAY
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Bahut khoob
धन्यवाद!
बहुत सुंदर विजय,
“मेरा खुदा मुझपर किये जा रहा सितम” उचित नहीं लगता, ईश्वर कभी अपने भक्तो पर सितम नहीं कर सकता !!
महाशय आपकी बात सही है।पर जब किसी को दुख-दर्द होता है तो वो भगवान को ही कोसता है कि प्रभु ने इतना कष्ट क्यों दिया।बस उसी भावना को मैने कलमबद्ध किया है।आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार…धन्यवाद।