आज़ादी ! आज़ादी !आज़ादी !,बस रट लगा रखी है ‘आज़ादी ‘।इस लफ्ज की गहराई जानते हो ?आखिर क्या है यह आज़ादी ?ऊंची सोच और विशाल ह्रदय ,सयमित जीवन है ‘आज़ादी ‘।तुम्हारी सोच में स्वार्थ की बू है ,इक घटिया ज़िद है आज़ादी ।अपने फर्ज़ तुम जानते भी हो!वतन से मांगते हो आज़ादी ।वतन के लिए फर्ज़ की अनदेखी ,मगर चाहिए तुम्हें हक़-ए -आजादी ।राष्ट्रीय संपत्ति की तोड़ -फोड़ ,आगजनी ,दहशतगर्दी ,गुंडागर्दी के लिए आजादी ।सरकार के खिलाफ खुलेआम नारेबाज़ी ,ज़ुबान से जहर उगलने के लिए आजादी ।तुम दे सकते हो प्रधानमंत्री जी तक को गाली ,उन्हें खंजर चुभोने को चाहिए तुम्हें आजादी ।वतन के संविधान ,सभ्यता और संस्कृति को ,अपमानित और मिटाने की चाहिए आजादी ।हमारे देश के दुश्मनों से मिलकर गहरी साजिशें ,साफ तौर पर गद्दारी करने की चाहिए तुम्हें आजादी ।अरे एहसान फरामोशों! इतने गुनाहो के बावजूद भी ,सर उठाकर बेशर्मी से जीने की तुम्हें चाहिए आजादी ।गर इतने ही हो परेशान तो चले जाओ ना यहाँ से ,दूर हो जाओ !अपनी ओकात समझ मे आ जाएगी और समझ मे ,आ जाएगा हर्फ -ए- आजादी ।फिर हम भी देखेंगे ,कैसे और कौन देता है तुम्हेंअपने बेलगाम ख़यालों के साथ बेलगाम जीवनजीने की आज़ादी !!
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ओनिका सेतिया ‘अनु’जी हार्दिक बधाई ! बहुत सही लिखी है रचना आपने ,रचनाकार की दृष्टि सदा राष्ट्र हित ,समाज हित के साथ ही सभ्यता -संस्कृति को कायम रखने की होनी आवश्यक होती है |
जब बहसी कोई लगे बहकने ,
कल्म की ताकत दिखलाते !
किस्में कितना दम भरा
शीश शिखा पर चढ़ जाते !
धन्यवाद महोदय ! मेरी रचना को पसंद करने और उसे समझने के लिए ।
बहुत अच्छा लिखा है आपने कविता जी आज़ाद देश में कुछ लोगों को आजा़दी किस लिए चाहिए , पता नहीं । देश प्रेम कहीं खो गया है , भटक रहे हैं कुच्छ लोग ,
धन्यवाद किरण जी , मेरी रचना को पसंद करने और समझने हेतु ।