गलती करी है तो उसे सहने का दम रखो इस जिंदगी के खेल में आशाएं कम रखो ताली बजी है ना कभी एक हाथ से सुनो सच को झुटलाने का ना मन में वहम रखो खुद को बचाने के लिए मारो ना गैर को आंखों में अपनी हर घड़ी कुछ तो शरम रखो झूठ को लिख कर कभी ऊंचा ना वो बना सच के लिए लड़ती रहे ऐसी कलम रखो तूफां भी आएंगे यहां छूटेंगे हाथ भी मधुकर सभी कुछ सोच तुम आगे कदम रखो शिशिर मधुकर
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बहुत बढ़िया सर
Tahe dil se shukriya Devendra
Maine bhi 26 Jan ko ek Kavita add Kari hai jaroor paden aasha hai aapko pasand aayegi.
Maine padhi atisarahneeya kavita hai , waaah
Aapkaa atahe didl se shukriya
एक अच्छी सोच शिशिर जी
Shukriya Kiran Ji …..
बहुत सुंदर सकारात्मक सोच प्रदर्शित करती अच्छी रचना शिशिर जी !
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji …..
👏👏👏👏
Thanks a lot Yogita Ji …