तारा चांद से रात में शिकवे शिक़ायत करता है ।अपने के टूटने का ग़म बयां वो करता है ।इन्हीं चांदनी रात में ‘जज़्बाती’ माहिया गाता है ।टूटते तारे से बस तेरी सलामती चाहता है ।-विक्रम जज़्बाती
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आदरणीय….अवलोकन कीजियेगा…भाव सामंजस्य की कमी है… पहली पंक्ति में रात में… तारे तो रात में ही निकलते हैं… चाँद ज़रूर सुबह देर तक नज़र आता है कभी कभी उसकी गति ऐसी है…रात लफ्ज़ ज़रुरत नहीं है…शिकवे शिकायत का मतलब भी एक ही होता है…दूसरी पंक्ति में अपने के टूटने की जगह अपनों से बिछड़ने ज्यादा सही लगता है… क्यूंकि टूटता तारा बोल रहा है…
जी में त्रुटियां का सुधार करता हूं , अब जो जज्बात में आया लिख गए sir