तड़पने के सिवा अब पास में कोई ना चारा है नहीं आता है वो नजदीक जो जां से भी प्यारा है कौन कहता है कि कर लो दुआ मिल जाएगी नेमत मेरा तो हाथ है खाली भले कितना पसारा है बड़ी मैं थी मुझे ये सोच मैं सच पे चला हूं बस समय ने गाल पे मारा मगर थप्पड़ करारा है दवा लीं हैं मगर ना रोग मेरा जड़ से मिट पाया तेरी यादों ने आ आ के दर्द हरदम उभारा है तरस उनको नहीं आता मुझे मझधार में छोड़ा डूबता जा रहा मधुकर नहीं मिलता सहारा है शिशिर मधुकर
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Good poem
Thanks
बहुत खूब…. मधुकर जी…मुझे स्पष्ट नहीं हुआ …. ‘बड़ी मैं थी..सच पे चला हूं’…या तो ‘थी और चला’ यहां सही नहीं है…अगर दो व्यक्तियों की बात है तो अगला मिसरा फिर भाव अधूरा छोड़ देता लगता है….
Great sir 👍
Thanks Devesh .
Babbu ji yahan chala hun ko chal Chaka hun samjhe to ye bhi past tense hoga.. poore sentence ko alag alag karke na dekhen . ChalA hun kaa prayog past men hi kiyaa hai. Or doosra misra to yah spasht kartaa hai ki main mean ghamand ko samay ne karaara thappad maata hai . Dono sambandhit to hain alag kahan.