ख्वाहिस रखो जिससे कुछ पाने कीवो दिल से दूर होता जाता हैख्वाहिस रखो जिसे कुछ देने कीवो दिल के करीब होता जाता हैखुली आँख से जो दिख नही पातावो बंद आँखों से दिख जाता हैजो लफ्ज़ो से बयां न हो पातावो बंद लब बयां कर जाता हैरूह तक को जो झकझोड़ है जातावो एहसास एक छुअन दे जाता हैजख्मों के दर्द की गहराई कोबस एक आह बयां कर जाता हैरातों के सुकून-ए-नींद का पताबदलते करवटें बतला जाता हैजो बात कान नही हैं सुन पातेदिल वो बात भी सुन जाता है By:-VIJAY
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Bahut khhob
धन्यवाद, देवेश जी!
Kya aap apna contact no de sakte hain Mera contact no 7982437710 hai
Meri bhi poem hai Devesh Dixit ke naam se dekhiyega
अवश्य आपकी रचना देखूंगा
My no.9097985296
बहुत अच्छे विजय,,,,,,,,,,,,,,,,, सुंदर भाव आपके ,,,,,,,,,,,,,,यदि अन्यथा न ले तो कुछ बिन्दुओ पर गौर करे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, रचना की सार्थकता के लिए आवश्यक है, अनेक स्थानों पर लिंग, वचन, भेद सम्बंधित त्रुटियाँ है जिन पर नज़र करना आवशयक है।
खुले आँख से जो दिख नही पाता….. या ……………….खुली आँख से देख नहीं पाता……… या ………………..फिर खुली आँखों से दिखाई नहीं देता ……….!
लब्ज़ो ……या ……लफ्ज़ो ?
वो बंद लब बयां कर जाता है………. या कर जाते है………….?
जख्मों के दर्द की गहराई को ……..या……….. जख्मो की गहराई से मिले दर्द ?
रातों के……….या……….. रातों की ?
बदलते करवटें………. या……………बदलती करवटें ?
कान नही है सुन पाता ……….या …………..कान सुन नहीं पाते ?
आदि आदि …..
शुक्रिया निवातिया जी!आपके बताये त्रुटियों पर ध्यान अवश्य दूंगा।मेरी व्यकारण थोड़ी खराब है इसलिए त्रुटियां होना स्वाभविक है।फिर भी आप यूँ ही दिशा दिखाते रहेंगे तो थोड़ी शुद्धता रचना में लाने का प्रयास करता रहूंगा।