जो मांग रहे हो तुम आज़ादीफिर लेते क्यूँ नही आज़ादीघर-बाहर आग लगाकर तुमदेश की कर रहे क्यूँ बर्बादीसविंधान की बात करने को आदीखुद ही क्यूँ बन बैठे तुम बागीरक्षा सविंधान की निकले हो करनेपर कानून तुम्हे न उसकी राजीकहते हो तुम्हारे भगवान है गांधीचारो ओर हिंसा की फिर क्यूँ है आंधीतख्ती के बदले पत्थर हाथो में लेकरमांग रहे तुम ये कैसी आज़ादीहो बन बैठे तुम राग-दरबारीझूठी खबर के बन गए तुम वादीबात सही तुमने न जानीकानून हाथ मे लेकर करते मनमानीमजहब की आड़ में हिंसा के रागीझूठी अफवाहों के तुम फरियादीदंगे न सहेगा अब कोई भारतवासीएक खरोंच भी देश पर तुम्हे पड़ेगा भारी By:-VIJAY
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Bahut Sundar Vijay Bhaiya
Thanks Ghanshyamji
बहुत बढ़िया विजय जी । पर मुझे खोंच की जगह पर खरोंच शब्द ज्यादा सही लगेगा ।
बहुत बढ़िया विजय जी । पर मुझे खरोंच शब्द ज्यादा सही लगेगा ।
आपके सुझाव पर अवश्य अमल करूँगा
This is true and good poem but I think kharonch word is suitable .
This is true and good poem.
Thanks devesh ji.