आंखे तो है , पर राह दिखता नहीदिल तो है , पर ये धड़कता नहीकश्मकश जिंदगी की है ये कैसीखुली फ़िजा में भी सांसो से वास्ता नहीमहफ़िल तो है, पर कोई अपना नहीनींद तो है , पर कोई सपना नहीचिराग-ए-उम्मीद की ख्वाहिश है ये कैसीजलने की चाहत में भी झोंकों से वास्ता नहीजुबां तो है , पर अल्फाज़ निकलता नहींजख्म तो है ,पर आह तक करता नहीकत्ल जिंदगी ने भी की है ये कैसीकातिल होकर भी जुर्म-दाग से वास्ता नहीहथेली तो है , पर लकीरें-किस्मत नहीजिंदा तो है,पर जिंदगी की हसरत नहीजिंदगी के भवर में नाव उतरी है ये कैसीडूबने के जद में भी डर से वास्ता नही
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अति सुंदर…………….. विजय,……………………………… भाव सम्प्रेषण अच्छा है,……………… वचन, लिंग भेद, अनुस्वार आदि के साथ टंकण त्रुटियों भी पर गौर करे, सम्बोधन में उपमा, उपमेय और उपमान ध्यान रखे रचना सार्थक बनेगी पाठन क्रिया के साथ पाठक के ह्रदय पटल पर भी स्थान बन पाने में सफल होगी !
धन्यवाद,आपके सुझाव और मार्गदर्शन के लिए आभार।