मंजिल दूर और दूर होती चली गई
पड़े थे जहां कदम वहीं पे रह गया
सपने देखे थे जीवन में कई
आँखें खुलीं तो भ्रम में रह गया
मंजिल दिखी जो कहीं दूर थी
चला तो ठोकर खा गया
गहरी लगी चोट थी
पथरीला था रास्ता
दूर कहीं धुंध थी
जिसमें रास्ता भटक गया
लगा समझदानी भी बंद थी
जिसमें धोखा मैं खा गया
मंजिल दूर की दूर रही
रास्ता न सही सूझ पाया
जख्म लगे थे गहरे कई
पर मरहम न कहीं मिल पाया
दर्द की स्थिति वही रही
भरोसा मेरा टूट गया
बहकावे में किसी के आना नहीं
ऐसा मेरा स्वभाव बना
शायद जीवन का नाम यही
अंदाजा सही लगाया था
मंजिल चाहे दूर सही
खुशी का माहौल बनाया था
कहानी मेरी वही रही
जिसका न मुझको अंदाज़ा था
मंजिल अब भी मिली नहीं
जिसको सोचा मैंने खजाना था ……………………………………………………………………………………देवेश दीक्षित
7982437710
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
खूबसूरत भाव हैं…आदरणीय…समझदानी….बोलचाल में तो लेते हैं… मुझे नहीं लगता ये साहित्यिक लफ्ज़ है…
Achcha hai …..
Tahe Dil se shukria aap logon ka