देखा है बचपन हमने
कितना सुंदर कितना सुरभित,देखा चंदन वन हमने
सुंदर अनुपम निर्मल निर्भित, देखा है बचपन हमने।
अब तो आया पैसों का युग, प्यार कहाँ से आयेगा
क्षण भर में ईमान बदलता, यार कहाँ से पायेगा।
बहुतों देखी दुनियादारी , स्नेह का बंधन हमने
सुंदर अनुपम निर्मल निर्भित, देखा है बचपन हमने।
मिलकर रहना हाथ बटाना, इतना ही तो सीखा था
बैर नही था मन में कोई, अपना यही सलीका था।
दिल में ना था पाप कहीं भी, मिलते थे बस मन अपने
सुंदर अनुपम निर्मल निर्भित, देखा है बचपन हमने।
भूल रहे रिश्तों का मतलब, भूल रहे मर्म अपने
दिनों दिन अब लुट रहे आबरू,भूल रहे क्यों धर्म अपने।
खुद ही इन हाथों से हमने, उजाड़ रहे चमन अपने
सुंदर अनुपम निर्मल निर्भित, देखा है बचपन हमने।
बड़े बुजुर्गों के सपनो को, आओ हम साकार करें
अपनी संस्कृति खोने न दें, उन पे क्यों न विचार करें।
जागृत होकर खुद ही खोलें, पातक मुक्त नयन अपने
सुंदर अनुपम निर्मल निर्भित, देखा है बचपन हमने।
माँ – बाप और गुरु की सेवा, अब हम सब क्यों भूल रहे
सभ्यता को ताक पे रखके, अपने में मशग़ूल रहे ।
ला रहे हैं सबसे ज्यादा , माथे पर शिकन अपने
सुंदर अनुपम निर्मल निर्भित, देखा है बचपन हमने।
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badai swavikaren ,
Aapki kavita ko yeh log yaha pe copy kiye hei: https://bhavankur.ashoshila.in/bhavankur-june-2020/?fbclid=IwAR1-03l09ke5jy6mooDC5UAtWnHOBcaZABC6XDaJCMc11UJy5cBb0Kw6kTc
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