अंगड़ाई
कल – कल करती बहती नदियां
चलती सनन – सनन पुरवाई ।
झूम – झूम के हवा वसंती
लेती है खूब अंगड़ाई।
वन-उपवन सब हरा भरा है
हंस रही देखो अमराई।
मंजर उसके महक रहे हैं
उसपर है चमकी अरुणाई।
कोयल की वह मीठी बोली
पैठ रही दिल की गहराई।
विरह की तो बात मत पूछो
वह साजन से है शरमाई।
काजल टिकुली बिंदिया बिछुआ
वो क्या जाने पीर पराई।
दिल के बंधन रिश्ते सारे
माया – ममता- प्रेम – तन्हाई।
ढूंढ रहा संसार में “बिन्दु”
सब लोगो का मीत – मिताई।
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
वाह बिन्दु जी।
प्रकृति से जुडे शब्दों के उपयुक्त चयन से रचना और अधिक रसमय हो गई है। बधाई बिन्दु जी।
Bindu Ji Abhar aap ka ati sunder rachna ke liye .
Hamen aap isi tarah matramugdha kerte rahiye.
Dhanyabad
M.Mikrani
http://www.mahatmapost.com
behad khoobsoorat…..binduji…..
भाई रबिन्देश्वर प्रसाद शर्मा जी रचना के लिए बधाई , टैग में अज्ञात कवि आ गया है सुधर लें।
मंजर उसके महक रहे हैं ,,,, सनझ नहीं पाया।
वाह बहुत खूबसूरत बिंदु जी !
Bahut khoob …..