वह खत लिखना, वह जवाब का इंतजार अब कहां
जो आंखों ही आंखों में हो जाता है वह प्यार अब कहां
वह ख्यालों की दुनिया मन ही मनमुस्कुराना
वो ख्वाहिशें वो चाहतें वह आंखो मेंखुमार अब कहां
खत लिखना भूल गए आजकल व्हाट्सएप आता है
तसल्ली नहीं किसी को हर कोई तुरंत जवाबचाहता है
इस तकनीक के दौर में जिंदगी के मायने बदलगए
सुनता नहीं कोई किसी की, अपनी सुनाना चाहता है
लिखता नहीं कोई आजकल, बस फॉरवर्ड पर जोर है
आदमी पड़ गया है अकेला, जबकि हर तरफ खूब शोरहै
कभी सुख दुख की बातें बैठकर बतियाते थे
मेल मिलाप बंद हुआ अब फेसबुक व्हाट्सएपका दौर है
गुरुकुल के जमाने में गुरु का सानिध्यमिलता था
शिष्य ज्ञान से पल्लवित हो सुमन समानखिलता था
वह गुरु के सानिध्य में ज्ञान पाना खोगया है
आज का गुरु तो बस गूगल बाबा हो गया है
✍ रामगोपाल सांखला “गोपी”
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Gopi ji razchana ke lie badhai aapka tag अज्ञात कवि men ho gya hai
सर बहुत आभार। कई दिनों के अन्तहराल पर हिन्दीह साहित्ये के इस मंच पर आना हुआ। वेबसाइट पर कुछ परिवर्तन हुए, पहले टेग मिला नहीं फिर बाद में लगाया। हौंसला अफजाई के लिए पुन: आभार।
Samsamyik badhiya rachnaa
शिशिर सर बहुत आभार
आपका मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहे।
SUNDER RACHNA KE LIYE BADHAI.
बिन्दू जी सर बहुत आभार
आपका मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहे।
बिन्दूा जी सर बहुत आभार
आपका मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहे।
bahut badhiya….gopiji….
हार्दिक आभार सीएम साहेब
बहुत खूबसूरत राम गोपाल जी !!
बहुत आभार निवतिया जी।