देखा मुहब्बत का जादू सपनों में आने लगा तू
उलफत की रस्मों को मिल के मुझ से निभाने लगा तू
जब से तू मुझ से खुला है तड़पन तेरी बढ़ रही है
बातों से अपनी यही अब मुझको जताने लगा तू
पहले पहल तो झिझक थी मन में भी एक कशमकश थी
परदे हया के खुद ही से अब तो हटाने लगा तू
खुद से बड़ा गमजदा था उमंगो का कुछ ना पता था
खुल के रंगो को हवा में अब तो उड़ाने लगा तू
जब से हुई गुफ्तगूं है मिलने के वादे वुए हैं
मधुकर को भी लग रहा है हंसने हंसाने लगा तू
शिशिर मधुकर
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बहुत बढ़िया….रदीफ़ “लगा तू” की जगह “लगा है तू” भी सोच कर देखें…रवानी…
Dhanyvaad Babbu ji. Aapkaa sujhaav anukarneey hai
अत्यंत खूबसूरत शिशिर जी !!
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ……..