जरा बताना चाचा नेहरू,
ये कैसा बाल दिवस है,
क्यों इनके चेहरे मुरझाये है,
क्यों इनके आँखों में ख्व़ाब नहीं,
क्यों इनके हाथों में किताब नहीं,
क्यों ये दर दर भटक रहे,
माँ की ममता से वंचित हो कर,
रोटी कमाने घर से निकल गए,
क्यों अपने नाज़ुक कन्धों पर,
पूरे परिवार का भार उठा लिए,
क्यों इनका मासुम बचपन,
बाल मजदूरी में गुजर रहा,
क्यों इनका जीवन अंधकार में गुजर रहा,
क्यों ये भूखे-प्यासे कचरे के ढेर सो रहे,
क्यों नहीं मिलती कोई सुविधा इन्हें
क्यों नहीं मिल रही कहीं पनाह इन्हें
अब तुम्हीं बताओ चाचा नेहरू ,
कैसे मनाये ये मैं बाल दिवस,
जब दिन रात ये बाल मजदूरी कर रहे ।
भावना कुमारी
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निःसंदेह आपने हर व्यक्ति की भावना को कलमबद्ध किया है……