बात बड़ी है
हिय-उपवन में,
लालसा के अंकुर फूटे,
मंत्रमुग्ध हो,
गौरैया सी चहचाने लगी,
क्षितिज की शाख पर,
क्रंदन करती, फुदकती,
नवजीवन के सपने संजोती,
सप्तरंगी सपनो में रंगी,
बहुरंगी पुष्पों संग पली,
पग उठा आगे बढ़ी,
बाज़ार में मोल हुआ,
ख़ाक के भाव,
अस्मित लूटी है,
दीपक की लौ में,
शीत से लड़ी है,
गूंगी बहरी मतलबी दुनिया में,
खुद को संभालने खुद से अड़ी है !!
!
बात बड़ी है
पर, मुख पे ताला डाले खड़ी है !!
स्वरचित: डी के निवातिया
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Behad sundar ………..
हृदयतल से आभार आपका शिशिर जी !!
Togin nhi Ho rha
हृदयतल से आभार आपका रामस्वरूप जी, …………………….लॉगिन के लिए साइट पर प्रदत्त जानकारी के अनुरूप कार्य करे !
Bahot pyara hai. Padh ker main to kahi kho hi gya. Keep it up sir.
Dhanybad aap ka .
M.Mikrani
http://www.mahatmapost.com
प्रोत्साहित करते सुंदर वचनो के लिए हृदयतल से आभार आपका एम० मिकरानी जी !!
अति सुंदर रचना निवतिया जी।
विचारों की प्रवाह मय प्रस्तुति।
हृदयतल से आभार आपका गोपी जी !!