ये हौसला कभी रुके नही
ईमान , इंसान झुके नहीं।
ढूंढ कर तुम शैतान मन से
आस्तीन का साँप मार दो।
कर लो निश्छल मन को अपना
अवगुण अपना पाप जार दो।।
मानस का रथ ये रुके नहीं
ईमान , इंसान झुके नहीं।
जीवन को सफल बनाओ तुम
इसको अब सजल बनाओ तुम।
हिन्द ज्ञानियों की धरती है
अपना भी मान बढ़ाओ तुम।
अपने कर्तव्य से चुके नहीं
ईमान , इंसान झुके नहीं।
कर्म प्रधान है इसको जानो
धर्म को अपना तुम पहचानो।
बुरा किये तो फंस जाओगे
बात गुणियों का तुम भी मानो।।
आवाज कंठ का सुखे नहीं
ईमान , इंसान झुके नहीं।
बाधाओं से मत धबराना
हताश होकर मत शर्माना।
पग अपना मत पीछे करना
अपनी डफली आप बजाना।।
दीपक प्रकाश का बुझे नहीं
ईमान , इंसान झुके नहीं।
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बिंदुजी…. बहुत सुन्दर भाव हैं…. वर्तनी दोष के इलावा भावों का सामंजस्य नहीं बैठा है… देखिएगा… “ईमान इंसान झुके नहीं”… ईमान अपने आप कैसे झुक सकता है ? इंसान का ईमान झुके नहीं या अपना ईमान झुके नहीं होना चाहिये…. “हिन्द ज्ञानियों की धरती है….इसको अब अटल बनाओ तुम…क्या कहना चाहते स्पष्ट नहीं…हो सकता मैं समझ नहीं पाया आपकी बात….
sri man jee fir ek najar karen . bahut bahut sukriya..