उसे ख़्यालों में रखता हूँ शायरी की तरहमुझे वो जान से प्यारी है ज़िंदगी की तरहतमाम उम्र समझता रहा जिन्हे अपनागया जो वक़्त गए वो भी अज़नबी की तरहमहक रहा है ज़माने का हर चमन जिनसेवो बेटियां हैं इन्हे खिलने दो कली की तरहकी जिसके आने से महफ़िल में उजाला बरसेये कौन आया है महफ़िल में रोशनी की तरहवो मेरा चाँद अगर छत पे आ गया तो ‘रज़ा’अंधेरी रात भी चमकेगी चांदनी की तरह
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वाह्ह्ह….बेहद खूबसूरत ग़ज़ल…रज़ा साहिब….
Bahut shukriya mohtaram
bahut khubsoorat
आपकी मोहब्बत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शर्मा जी
क्या बात है बेहतरीन रचना !!
Bahut khoob……
आदरणीय निवातिया आपकी मुहब्बत के लिए बहुत शुक्रिया
मधुकर जी ग़ज़ल तक आमद के लिए तहे दिल से शुक्रिया