तुम को हम खुद से छुपाएं तो छुपाएं कैसे…
तुम मेरी शाम-ओ-सहर हो तो भुलाएं कैसे….
दिल कहे याद मुझे वो भी तो करता होगा….
अब न वो बात सहर रात बताएं कैसे….
वो ठहर जाएँ तो रुक जाएंगी सांसें मेरी…
आखिरी पल का सुकूँ बोझ उठाएं कैसे….
हम चिरागों की तरह जलते अगर तम होता…
मन अँधेरे ये जहां भर के बुझाएं कैसे….
याद बरसात ही होती तो इसे सह लेते…
आग बरसात लगाए तो बुझाएं कैसे….
ज़िन्दगी-मौत गले मिलतीं हैं जब भी मेरे…
है तमाशा के हकीकत ये बताएं कैसे…..
रूह तो जिस्म की बंदिश से परे है ‘चन्दर’…
फलसफा इश्क़ सफर रूह दिखाएं कैसे….
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/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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Behad khoobsoorat Babbu Ji ……..
तहेदिल आभार आपका…Madhukar ji…