मधुमालती छंद
इंसान को मत भूलना
उसका करो पहचान तुम।
हैवान सारे घूमते
होना नहीं हैरान तुम।।
है अगर साहस तुम चलो
हैवान हैं उसको दलो।
ये रथ न रुक पाये कभी
सब साथ हो जाओ अभी।।
है द्वंद अब किस बात की
क्यों सोच भीतर घात की।
क्या डर गये शैतान से
अब मार दो तुम ध्यान से।।
उर में छुपी जो कालिमा
उस पर उतारो लालिमा।
अब सोच है किस बात की
यह बात हैै औकात की।।
तुम सत्य को मत छोड़ना
बाधा अगर हो मोड़ना।
मंजिल यही वह “बिन्दु” है
सागर वही जो सिन्धु है।।
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बेहद खूबसूरत बिंदुजी…. एक दो जगह वर्तनी दोष है…. और पहले छंद की तुकांतता सही नहीं है… भूलना…पहचान तुम… आपको गलती लग गयी इसमें… आपने इसमें २८ मात्रा पर तुकांतता ली है… बाकी जगह सही है…