Homeदुष्यन्तप्रेम-2 प्रेम-2 विनय कुमार दुष्यन्त 30/03/2012 No Comments मैं भर लूँ उडान ऊँचे-नीले अथाह आसमान में और अक्षरों की वर्षा हो जो तुमसे लिये हुए हैं और तुमको ही है समर्पित कभी तारों और कभी मोतियों की तरह। Tweet Pin It Related Posts अचानक आहा! प्रेम-3 About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.