सपनों में सब डूबे क्यों हैं
इतने बड़े अजूबे क्यों हैं।।
देखें वह इतिहास पलट कर
लोग हसेंगे उलट – पलट कर।
भ्रांति जब तेरे मन में आये
आँखों में सपने छा छाये।।
जिगर में आके चुभे क्यों हैं
इतने बड़े अजूबे क्यों हैं।।
गहरे नींद में सपने आते
ये सपने भी कुछ कह जाते।
ख्वाबों की तो बात अलग है
खुली आँख में सब रह जाते।।
अब बताओ सब ऊबे क्यों हैं
इतने बड़े अजूबे क्यों हैं।।
सोचने को सब लोग सोचते
आंँसू को हर रोज पोछते।
अपने ऊपर विश्वास जमाओ
तुम किस्मत को क्यों कोसते।।
हर इक शख्स गु़रूबे क्यों हैं
इतने बड़े अजूबे क्यों हैं।।
ग़रूबा – पूरी तरह से डूब जाना।
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बिंदु जी….बहुत खूबसूरत हैं पर घुलट – पुलट ? उलट पलट तो समझ आया ये क्या है….वर्तनी दोष हैं जैसे कि चूभा ….अंत में “सबसे बड़ी महबूबा क्यों है” किस के लिए है ये स्पष्ट नहीं हुआ….
BABBU JEE MAINE KUCHH THIK KIYEN HAIN DEKH LIJIYE.
अति सुंदर बिंदु जी ,……………….बब्बू जी के विचार से सहमत हूँ, …………………….इस रचना पर टंकण त्रुटियों व् लिंग भेद सुधार के बारे में शायद मैंने आपको अवगत किया है पूर्व में !
ABHI MAINE THIK KIYE HAI NIWATIAN JEE DEKH LEN..