तू सामने जो आया नजरे मेरी झुकी थीं
दिल में वो प्यार उमड़ा धड़कनें मेरी रुकीं थीं
कहती बता क्या तुझसे कुछ भी समझ ना आया
बातें मेरी पुरानी सब कुछ ही कह चुकीं थीं
मेघों सा आ के बरसा तू जिस तरह से मुझपे
उम्मीदें बच गई कुछ वरना तो सब फुकीं थी
आई थी मैं तो एक दिन गलियों के बीच तेरी
तू पर दिखा ना मधुकर खिड़की सभी ढुकीं थीं
फूलों सा प्यार तेरा मुझको जिला रहा है
वरना तो बस जहन में कीलें सी कुछ ठुकीं थीं
शिशिर मधुकर
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बहुत बढ़िया…. मतले में धड़कन की जगह धड़कनें कर लीजिये…..नजरे = नज़रें …जहन = ज़हन… देवनागरी में जो लफ्ज़ हैं वो उर्दू में जैसे हैं वैसे ही हैं…. किसी भी भाषा को बिगाड़ने का हक़ नहीं है हमें…. अखबार वाले कुछ भी लिखें वो सही हो ज़रूरी नहीं है… आप दैनिक भास्कर इतवार को वासवानी का कॉलम पढ़ा करें वो पुराने कलाकारों पर लिखता है….फिल्मों पर लिखता है …. उस कॉलम में देखें लफ़्ज़ों का प्रयोग अगर आपको अखबार में ही देखना है… देवनागरी में जहन नहीं है लफ्ज़ ज़हन है…. और ग़ज़लों में लफ्ज़ ज़ह्न लेते हैं…. ज़हन भी नहीं……
Shukriya Babbu Ji. Main bhasha ke swaroop par samay ke saath chal naa chaahtaa hun. Isiliye main kahtaa hun ki Main aam bol chal ki bhaashaa me likhta hun. Bhasha ki purity ke vivaad se Hindi ka bahut nuksaan hota hai jismen main nahin padnaa chaahtaa. Ye samay tay karegaa ki in shabdon ka is tarah prayog uchit hai yaa nahin. Bhaav samajh me aane chaahien or bhaashaa ka badalte vakt ke saath taalmel rahnaa chaahie. Urdu bhaashaa kaa to vikaas hi aise hua hai. Urdu kaa ek arth baajaar bhi hai jo do sabhyataaon ke aapsi milan se sambhav ho saka.
अति सुंदर ………………..!!
यह बड़ा ही अहम् विषय है……………………… भाषा की दुर्गति जितनी वर्तमान में हो रही है विशेषकर पत्रकारिता और मीडया के माध्यम से उसका कोई माई-बाप नहीं है, कई बार साहित्यविदो द्वारा खूब लताड़ा भी जाता है इन्हे लेकिन व्यवसायीकरण ने सब कुछ चौपट कर दिया है !
Dhanyavaad Nivatiya Ji. Bhaashaa ke samvandh me mere uprokt vichaar dekhen.