कूचे में आए तुम बिना मिले चले गए
एक बार फिर हम तेरे हाथों से छले गए
मुश्किलों का इल्म था और सच था सामने
नैनों में ख्वाब मिलने के फिर भी पले गए
बेचैनियां थीं दर्द था जब तुम जुदा हुए
बिरहा की आग में फकत हम तो जले गए
खाक जो अपने मिलन की इक गवाह बनी
चन्दन समझ के उसको हम माथे मले गए
लुट गए हैं अब तो ये एहसास है हुआ
तेरी अदावतों में हम मधुकर भले गए
शिशिर मधुकर
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वाह । बहुत खूबसूरत सर।
Tahe dil se shukriya Devendra ……
अति सुंदर सृजन
Shukriya Nivatiya Ji ……