लो आज ग़मों ने फिर आ के मुझे घेरा है
इस रात का अब कोई दिखता ना सवेरा है
हर तरफ उदासी है ना फूल खिला कोई
देखो तो कुदरत ने क्या चित्र उकेरा है
ना तना है ताकतवर और पात सभी झरते
ना पेड़ की शाखा पे चिड़ियों का बसेरा है
ना जाने कैसी किस्मत निकली है अपनी तो
जो शख्स मिला अब तक निकला वो लुटेरा है
क्या होगा ना जाने मंजिल मिल पाएगी
हर ओर देख मधुकर कोहरा ये घनेरा है
शिशिर मधुकर
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बहुत खूब ………………. मधुकर जी ।
Tahe dil se shukriya Sarvjeet ………
बेहद खूबसूरत…..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji …………….
अति उत्तम सृजन सुंदर भाव शिशिर जी !
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji …..