जिंदगी में दर्द जैसे आजकल घटने लगे हैं,
दर्द को पर्दा किये हम ख़ुदबख़ुद हसने लगे हैं!
ख़्वाब आँखे देखलें वो नींद अब लाऊँ कहाँ से,
और हम यूँ पागलों से सोच में पड़ने लगे हैं!
एक वो नायाब दिल है चाहता हूँ बेतहाशा,
वो मगर ये सोचते है हम उन्हें ठगने लगे हैं!
जानता हूँ जिंदगी ये कल तलक थी गमजदा सी,
देखलों की ख्वाब इसमें कुछ नए सजने लगे हैं!
आरजू “एकांत” की तुम बेहतर है जान जाओ,
आप आओ जिंदगी में आस ये रखने लगे हैं!
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(एकांत)
शशिकांत शांडिले, नागपुर
मो.९९७५९९५४५०
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लाजवाब…..रदीफ़ में है को हैं कर लें कृपया…. सौफीसदी नहीं पता क्या सत्य है…बेहतर है या बहतर…. लफ्ज़… आपका कोई जानकार हो तो पता करके मुझे भी बताएं….. अगर बहतर है लफ्ज़ तो वज़्न इसका २२ होगा….
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
कुछ बदलाव किये हैं ।
और बेहतर सही है बहतर अभी तक सुनने में नहीं आया है मेरे
शायद आप सही भी हो किन्तु बेहतर यानी अच्छा होगा अगर।
अति सुंदर शशिकांत जी, टंकण त्रुटियाओ पर नजर कर लें !
जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका !