मेरे पापा जिंदगी की सबसे बड़ी जागीर है
मै उनकी नन्ही परी हूँ वो मेरी तक़दीर है
किन शब्दों में करूँ मै उनका बखान
माँ अगर आत्मा तो पिता मेरे शरीर है !!
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जब अन्धकार में रहती हूँ रौशनी बन जाते है,
धूप में मेरे लिए जो छाया बन खड़े हो जाते है,
मै उनकी आँखों का सितारा हूँ, ये मैंने देखा है,
वो मेरी हर ख्वाहिश बिन बोले समझ जाते है !!
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मै आशााओं की पतंग वो जीवन को डोर है
कर शिक्षित मुझे बढ़ाया आकाश की ओर है
उनकी छत्रछाया में मिली मुझे जो आज़ादी,
इस कपटी दुनिया में उसका नहीं कोई ठोर है !!
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स्वरचित डी के निवातिया
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आत्मिक भावों का निरूपण…. नमन आपके भावों को….. कई जगह अनुस्वार रह गया है… है की जगह हैं होगा… देखिएगा….
बहुत बहुत धन्यवाद आपका बब्बू जी आपका सुझाव अनुकरणीय है !