झुकी है आँख उसकी डर में अब अंजाम से पहले…
कि सूरज ढल गया है आज तो बस शाम से पहले…
मकाँ को छोड़ कर मुझको हरिक दिल घर बसाना है…
मरूं क्यूँ रोज़ हर पल ही मैं जीवन शाम से पहले….
वफ़ा में चाँद तारे टांक दिए सब उसकी चूनर पे…
मगर मैं लुट गया सरेराह मंज़िले गाम से पहले…
नज़र थी आसमाँ पर ओ दिवारें खींच ली ऊंची….
हवा के एक झोंके ने ढहाया बाम से पहले….
जहाँ की तुहमतें ‘चन्दर’ हिला मुझको नहीं पायीं…
मुझे तोडा नज़र तेरी ने हर इलज़ाम से पहले….
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/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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Bahut khoobsurat gazal sir..
तहदिल आभार आपका….devendraji….
बहुत उम्दा बब्बू जी……………………………..बेहतरीन सृजन ,
मंज़िल के साथ गाम कुछ जँचा नहीं ………………….. गाम का तातपर्य शायद गाँव या ग्राम से लिया है आपने
तहदिल आभार आपका….निवातियाजी….जी आप सही कहते हैं…गाम फ़ारसी का लफ्ज़ है…इसका मतलब गाँव…कदम…. दोनों होते हैं…. मंज़िल-ए-गाम सही है… आज कल गाँव रहे नहीं तो अजीब लगता होगा…. और थोड़ा बृहद में जाएँ तो पड़ाव में प्रयोग होता है इसका…
Behtreen gajal Babbu Ji. Ek sujgaav hai “taank” ki jagah “see” kraken dekhiye geytaa aur badh rahi hai .
तहदिल आभार आपका मधुकरजी….बोलने में तो ‘सी’ ही ज़ियादा सही आता है…पर जिस बह्र में लिखा उसमें सी वहाँ नहीं आ सकता…इसको बह्र के हिसाब से ऐसे बदल के किया है… आप देखें इनमें से कौन सा ज़ियादा उचित है… अगर दोनों ही सही नहीं हैं तो फिर शेर ही बदलने की सोचूंगा…. आभार आपका….
वफ़ा में चाँद तारे टांक दिए सब उसकी चूनर पे…
वफ़ा में सिल दिए सब चाँद तारे उसकी चूनर पे…