देखा जहां भी जिंदगी सच के करीब थी उलफत वहां पीछे खड़ी बेहद गरीब थी पल में यहां पल में वहां वो कैसे हो गए आदत ये हुस्न की मुझे लगती अजीब थी उसको मिला दो मुझसे ए मेरे दोस्तों असली मुहब्बत जिसको भी हरदम नसीब थी दीवानगी जता के वो फिर अजनबी बने कोई तो पूछे उनसे ये कैसी तरकीब थी सब कुछ सहा जिसने मगर ना दूरियां करीं मधुकर मुहब्बत की वहां देखो तहजीब थी शिशिर मधुकर
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umda……………..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji ……………..
बेहतरीन सृजन !
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji …….