एक चींटी चली जा रहीअपनी मस्ती में गा रहीदूर शक्कर की एक ढेलीदिख रही थी पड़ी अकेलीबिटिया रानी उसी डगर परचली झूमकर डग मग करकदमों के नीचे न आयेनन्ही चींटी दब न जाये।आने वाली है विपदाचींटी को है नही पतादोनों ही मासूम अबोधपर किसको है इसका बोधनिरपराध अपराधी होगीक्या चींटी की बर्बादी होगीनहीं! सृष्टि स्वयं संरक्षक हैभक्षक ही रक्षक है।नन्हे विवेक ने आंखे खोलीबिटिया रानी टीटी बोलीकदम बचाकर रखा डगमगनन्ही चींटी हुई सुरक्षित। ..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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सुन्दर रचना!
umda……
लाजबाब सृजन,,,,,,,,शायद इसीलिए कहा जाता है बालमन में भगवान् का वास होता है
Ati sundar …….