तेरी मुहब्बत पे है नाज मुझको निशानी कोई तू दे आज मुझको तू साथी है मेरे पिछले जन्म का आती है ये ही आवाज मुझको जमाने मे यूं तो लाखों बशर हैं लुभाते हैं बस तेरे अंदाज मुझको नहीं कोई दूरी कहीं बीच में है तेरे पता हैं सभी राज मुझको तुझे छोड़ना तो मुमकिन नहीं है भले कोई देने लगे ताज मुझको तुझको सिमरना और तेरी बातें अब तो नहीं है कोई काज मुझको तू कितना है अपना कैसे बताऊं मधुकर ना तुझसे रही लाज मुझको शिशिर मधुकर
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सुंदर भाव।हमेशा की तरह ।
Tahe dil se shukriya Devendra ……
बहुत बढ़िया है पर काफिया सही नहीं है….उर्दू/फ़ारसी में नाज़…अंदाज़…राज़ है….नुक्ता लगता है इसमें…
नाज हिंदी में भोजन या अनाज का प्रयाय है… नाज़ जबकि नखरों का…अदाओं का… अंदाज हिंदी में आभास के लिए लेते हैं… अंदाजा इसी का रूप है… राज हिंदी में राज्य से है….जबकि राज़… गोपनीयता से…
Babbu ji. Urdu faarsee ki in shabdon ko hindi ne binaa nukte ke sweekaar kiyaa hai. Maine is baat ko Bahut dhyaan se Jaan has parkhaa hai. Asal me ham jab hindi gajal ki baat karte hain to hindi me accept kite hue shabdon kaa hi chayan uchit hoga. Isliye Aaj kal Main apni gajalon me arbi faarsee ke hindi roop ko hi tavajjo de raha hun. Pustak.org par Bahut saare shabdon ke arth uplabdh hain .
मधुकरजी…. मैं यह नहीं कह सकता की आपकी जानकारी गलत है… नेट पर बहुत सी साइट ऐसी हैं की लोग जो लफ्ज़ जैसे ज़ियादा प्रयोग करते वैसे उसको ऐड करते रहते हैं… रेख़्ता उर्दू फ़ारसी लफ़्ज़ों की मशहूर साइट है… उसमें भी बहुत कुछ गलत है… लफ्ज़ सही क्या है वो तो उर्दू /फ़ारसी जानने वाला बता सकता है… या ऐसा शब्दकोष हो जो मान्य हो…किसी विद्वान् का बनाया हो… अगर कोई हिंदी के ‘तुम्हें’ को उर्दू में ‘तुमे’ लिखे वो गलत ही होगा…संस्कृत और हिंदी सम्पूर्ण भाषा है… इन्होने दूसरी भाषा के किसी भी लफ्ज़ को नहीं लिया है जो मेरी जानकारी है… देवनागरी जो प्रचलित भाषा है उसमें सभी भाषाओं से लफ्ज़ लिए हुए हैं…लेकिन वो उसी रूप में लिए हैं जिस रूप में उस भाषा में उच्चारित होते हैं… क्यूंकि भाषा को बिगाड़ना मकसद नहीं है… बल्कि एक दूसरे को जानना है …. हाँ कुछ गज़लगो हिंदी में उर्दू के लफ़्ज़ों को लेते हैं और बह्र में लिखते हैं वो उस हिसाब से तोड़मरोड़ लेते हैं…. उदाहरण स्वरूप… उर्दू / फ़ारसी में लफ्ज़ है ज़ह्र…शह्र..बह्र..कह्र…कब्र… हिंदी में इनको ज़हर… शहर… बहर… कहर… कबर भी लिखते हैं गज़लगो… मात्रा भार बदलने को… हालांकि वो सही नहीं है… शहर को वो १११ या १२ ले लेते हैं…उर्दू फ़ारसी में शह्र २१ है…ऐसे ही बाकी का वज़न … बस… लेकिन हिंदी के जितने भी अच्छे साहित्यकार ग़ज़ल लिखते हैं… वो शह्र को शह्र ही लिखते हैं…शहर नहीं… गोपाल दास नीरज की ग़ज़लें कुछ दिन पहले पढ़ी थी… वो उर्दू लफ़्ज़ों को अक्षरक्षः पालन करते हैं… क्यूंकि भाषा के मूल रूप को बिगाड़ना मकसद है ही नहीं…. सबसे बड़ी बात….उर्दू में ट, ठ..च..छ..ज है ही नहीं…. तो लिखे भी नहीं जाते…. और कहीं जो बोला जाता है उसका किसी और नुक्ते के साथ मिलान होता है तो आवाज़ करेगा…..
मुझे उर्दू/फ़ारसी के जानकार ने एक शब्दकोष बताया था… जो मेरे जैसे के लिए मार्गदर्शक है… उसने दो बताये थे… एक का नाम भूल गया… वो ४ वॉल्यूम में है… बहुत बड़ा… उसको फ्री हो कर लूँगा… एक और शब्दकोष है जिसकी उसने तरफदारी की वो है…राजपाल का शब्दकोष… जो किसी बाहरी नाम के हिंदी/उर्दू/फ़ारसी जानकार का लिखा है… मैंने वो लिया हुआ हो… आप उसको रेफर करके देखें… फायदा होगा…
उम्दा सृजन शिशिर जी,,,,,,,,, बब्बू जी ने एकदम सटीक स्पष्टीकरण दिया है ,,,,,,,,बधाई !
Nivatiya Ji kriptaa Babbu j8 ko diyaa gaya meraa uttar aawashy dekhen.
बहुत सुन्दर रचना।
Shukriya Vijay ……