तुझको पुकारते रहे और शाम हो गई तनहाइयों के जिंदगी बस नाम हो गई दर पे तेरे जब भी गए तुझमें ही खो गए चौखट तेरी ही बस मेरा इक धाम हो गई उलफत मैं ढूंढने चला जब भी जहां के पास कोशिश मेरी हर एक ही नाकाम हो गई मैंने नशा किया फकत आंखों से इक तेरी जब भी नजर मिली तो वही जाम हो गई मुस्कान तेरी ही फकत ज़िंदा जिलाए है मधुकर कहे कि वो ही अब पैगाम हो गई शिशिर मधुकर
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उम्दा….मधुकरजी…आपकी कलम यूं ही चलती रहे……मेरे पास तो एक महीने में एक रचना लिखी जाती… लफ्ज़ ख़तम हो जाते हैं…हाहाहाहा…. माँ शारदे की कृपा बनी रहे… जय हो…
Tahe dil se shukriya Babbu Ji. Ye nishchay hi maa shaarda ki kripa or aap jaise mitron ki shubhkaamnaaon kaa hi parinaam hai.
Very nice poem ,Shishir JI
So very nice of you Kiran Ji . Heard from you after a long gap. Hope all is well.