मद्धिम होता उजियाराबुझ रहा चाँद सूरज हारानिशा बिलखती जुगनू खोजेकाल क्रम न किन्तु पसीजेबेबस बेसुध अवाक पड़ीबिधना ने कैसी रची घड़ी।इस घड़ी कहाँ तुम हो प्रियतमचिंता में व्याकुल है तन मनअम्मा बोलो संबंधीजनएकत्र हुए हैं किस कारनचेहरों पर घोर निराशा हैक्या टूटी कोई आशा है।इक खामोशी सी छाई हैकोई खबर न उनकी आई हैहृदय सुमन मुरझाए जातेअश्रु पलक तक आये जातेहांथो से भारी है कंगनचूड़ी क्यों लगती है बंधनसारे प्रश्नों को टाल मिलोप्रियतम तुम जल्दी आन मिलोंफिर कंगन खनके चूड़ी गायेमेंहदी सब तन मन महकायेआवाज न कोई आती हैखामोशी बढ़ती जाती हैसहसा एक संदेशा आयाप्रलय बवंडर मातम लायाहाथ पकड़कर सब रोते हैंचिल्लाते हैं दम खोते हैंसीने से लग बिलखे अम्माहुई ‘अभागी’ तू प्रियतमा। देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
Behad bhaavuk rachnaa Devendra Ji …….
बेहद मार्मिक….शब्द संयोजन उम्दा….