किससे कहूं रिश्ता मेरा जो तुमसे खास है तेरे सिवा किसी और से कोई ना आस हैदेखो चमक जो अब मेरे चेहरे पे ना रही वापस मिले तरकीब उसकी तेरे पास हैजो भी है सच के साथ में तनहा सा रह गया कलियुग में सही आदमी लगता उदास हैकोशिशें करीं कि हर बड़े ताले को तोड़ दें पर ना जाने क्यों नहीं मिलता निकास हैवो दूर से लगता था कोई आदमी जहीन नजदीक से मधुकर मिला नकली लिबास हैशिशिर मधुकर
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बहुत खूबसूरत…..मेरा अपना मानना है कि किसी भी युग इत्यादि का नाम रचना में सीधे तौर पर आये तो रचना कमज़ोर होती है अगर वो दार्शनिकता भरी न हो….भाव रचना के भारी होने चाहिए सब पर… आम तौर पर आज कल या इस दौर में लफ्ज़ प्रयोग करते हैं…कलियुग में उदासी का मतलब किसी और युग में उदासी नहीं थी… जो तर्कसंगत नहीं है… राम फिर क्यूँ भटके वन वन में…उदास त्रेता में ?
Tahe dil se shukriya Babbu Ji. Lekin ek tark yah bhi to hai ki jab ham kaliyug me rah rahe hain to baat isi ki kar rahen hain. Nishchay hi udaasi khushi jalan, irshya, prem ityaaadi hat yun v kaal me rahi hongi.