माँ, मैं तुझे यूँ हर रोज याद कर लिया करता हूँअपने अंतस्थ में रोज अमृत भर लिया करता हूँ। तुमसे दूर हूँ पर तेरी तस्वीर से कभी कभीमन बहलाने कुछ देर बातें कर लिया करता हूँ। जब भी बीमार होता हूँ, तेरे हाथों से दवामैं सपनों में तुम्हें ही बुलाकर लिया करता हूँ। सुकून औ खुशी की तलाश में, मैं क्या नहीं करताअंधेरे में तेरा उजाला भर लिया करता हूँ। ये तेरे संस्कारों की सौगात का ही असर हैमैं तेरा दर्शन मंदिरों में कर लिया करता हूँ। मैं पलकें तेरी याद में भिंगा लिया करता हूँआज भी बच्चों की तरह जिद्द कर लिया करता हूँ। माँ, तू ही मेरी भक्ति शक्ति का अनुपम स्वरूप हैतेरी दुआ से मैं बस झोली भर लिया करता हूँ। अस्सी की उम्र में मीठी नींद की चाह रखे हूँयूँ ही तेरी गोदी की याद कर लिया करता हूँ। …. भूपेंद्र कुमार दवे00000
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आदरणीय…..माँ के चरणों में जो श्रद्धा सुमन अर्पण किये हैं आपने…. वो हमेशा ही महकते महकाते रहेंगे….बेहतरीन रचना है और क्या ही प्यारा अंत किया है रचना का….अनुपम…नमन आपके भावों को…. जय हो….
आपने मेरे प्रयास को अपने शब्दों से सार्थक बना दिया। अनेक धन्यवाद।