आज अरसे बाद एहसास हुआ है फिर सेकी मैं ज़िंदा हूँसाल दर साल जैसे वक़्त बीत रहा थामैं धीरे-धीरे मर ही तो रहा थामेरी बढ़ती नाकामियों ने तो लगभग नाउम्मीद ही कर दिया थारोज-रोज के ताने सुन करकहना तो बहुत चाहता थापर फितरत नहीं थी जवाब देने कीबस इसलिए तो चुपचाप सा हो गया थाआँखों मे उभरे सपनेआँसुओं के संग बहते जा रहे थेमेरे वो अपने ,जिन्हें मैंने अपना माना थासबने साथ छोड़ ही तो दिया थाकोई ऐसा था ही नहीं जिससे अपना दर्द बांटताया अपने जज्बात साझा करताधीरे-धीरे साँसे भी मुझे अपनीघुटती सी लग रही थीशायद वो ख़ुदा ही मुझसे नाराज़ बैठा थापर ये नहीं पता था किमेरे हक के लिएउन्होंने कुछ बेहतर अब तक बचाये रखा थाये संघर्ष जो काफी लंबा खींच चला थाउसका अंत आखिरकार हो ही गया थासपने सच हो गए है अबऔर मैं फिर सेअपने जिस्म में जिंदा हो चला हूँ—अभिषेक राजहंस
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बहुत खूबसूरत….. आम फितरत है…नाकामियों में इंसान हिम्मत खो देता है… पर उम्मीद को ज़िंदा रखना भी हमारा ही दायित्व है…. जो आज है वो कल नहीं था जो कल था वो आज नहीं है…