मोह नहीं आँसू से मुझकोचाहो तो ये सब छितरा दो। पीड़ा सहना हल्का कर दोया पीड़ा से लथपथ कर दोचाहो तो मुस्कानें हर लोऔर हृदय में आहें भर दो। पर आँसू अब ना ढलने दो। मोह नहीं साँसों से मुझकोचाहो तो सब बिखरा दो। साँसों की झुरमुट में छिपकरतक्षक को ताक लगाने दोऔर गरल उसके दंशों काअब रग रग में भर जाने दो। पर साँसें अब ना चलने दो। मोह नहीं अब मन के अंदर इच्छा सारी मिटवा दो। खाली हो तन अंदर बाहरसन्नाटा ऐसा सजने दोबिन प्रकाश का जग हो जावेऐसा अँधियारा रमने दो। पर तन अब ना सजने दो। मोह नहीं है तन मन धन कातप से ही तुझको तपने दो। तुम सा यूँ ही चलता जाऊँब्रह्मांड़ भ्रमण पर जाने दोचाहो तो बन मेरा साथीसब सत्य प्रकट हो जाने दो। पर जीवन फिर ना मिलने दो। …. भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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बेहतरीन भावों से रचित….विरक्त मन को किसी चीज़ की परवाह कहाँ होती है….
Ati sundar ………