वो जादू है मुहब्बत में जवां जो मन को करता है ना जाने फिर भी क्यों इंसान प्रीति धन को करता है बोल वो प्यार के तेरे समां जाते हैं नस नस में लहू सा बन के फिर ये प्रेम शीतल तन को करता है मुहब्बत की आस पाले नाचते मोर को देखो मोरनी से मिलन को प्यार वो इस घन को करता है मुहब्बत के वार से ही उसने दुनिया हरा डाली मधुकर सर झुका एहतराम उसके फन को करता है जहां पैदा हुआ महबूब उसका चांद सा प्यारा नमन वो ऐसी मिट्टी के हर इक कन कन को करता है शिशिर मधुकर
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bahut sundar…………
Tahe dil se shukriya Babbu Ji……
सुंदरतम
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ……..
सुन्दर रचना
Tahe dil se shukriya Narendra Ji ………..