पर्यावरण दिवस
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पेड़-पौधे काटकर बैनर, पोस्टर बना रहे है,
संदेशो में जागरूकता अभियान चला रहे है ।
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विलासिता पूर्ण जीवन जीने की चाहत में,
हम प्राकृतिक सम्पदा को नित मिटा रहे है।
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अपने ही हाथो से घोंटकर गला दरख्तों का,
मशीनीकरण के आदी हो जीवन बिता रहे है।
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किसे परवाह क्या होगा आने वाली पीढ़ी का,
निज स्वार्थ में अंधे अमूल्य थाती लुटा रहे है।
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गाडी, बंगले और आबादी की रफ्तार बढ़ाकर,
अपने हाथो से हम को पर्यावरण मिटा रहे है।
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खोदकर कब्र अपनी खुद ही जश्न मना रहे है
इस तरह से हम पर्यावरण दिवस मना रहे हैी
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स्वरचित : डी के निवातिया
बेहद खूबसूरत ….सटीक चिंतन……
बहुत बहुत धन्यवाद BABBU जी,
Waah. Behad sateek vyang Nivatiya Ji …….
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी,
बहुत खूब मान्यवर.
विडंबना है उस संस्कृति की जहां वृक्ष पूज्य है, पर उसका उपहास किया जाता है. अब जब जान पर बन आयी है तो ‘पर्यावरणविद’ उपदेश दे रहे हैं.
बहुत बहुत धन्यवाद Vivek Singh जी,