देखो उलझ गया हूँ मैं दुश्मन की चाल में
तब ही तो ना फर्क कोई आता है हाल में
जो चाहता था वो मैं उसकी कैद में हुआ
अब लकीरें पड़ रहीं हैं बस अपने भाल में
बीत जाएगी तनहा क्या यूं ही जिंदगी
या दिखेगी कुछ ख़ुशी अच्छे से काल में
किस्मतों के खेल निराले हैं देख लो
तड़पा किया हूं मैं तो वो पाता है थाल में
जब हर कोई अपनी ही धुन हरदम बजा रहा
मधुकर मजा आएगा कैसा भी ताल में
शिशिर मधुकर
अति सुंदर
Bahit Bahut Shukriya ……………..