होंठों से छुआ मुझको अश्कों से भिगोते हैं
नींदें मेरी सब छीनीं खुद चैन से सोते हैं
खुद आड़ में छुप मेरी दुनिया को मसल डाला
दगा मुझ को मुहब्बत में दे दे के डुबोते हैं
वो भूल गए सब कुछ मसरूफ हैं जीवन में
यादों कीं मगर माला आशिक तो पिरोते हैं
उनकी तो वही जाने आंखें से कहां बोला
ये नैन मेरे लेकिन सपनों को संजोते हैं
इस भीड़ ने दुनिया की मूरत वो हटा डाली
श्रद्धा से मगर मधुकर उस जगह को धोते हैं
शिशिर मधुकर