ओस की बूंदों से,
जाड़े के कोहरे से,
धूप में परछाई से,
बादलों में इंद्रधनुष से,
कब हमसे जुड़ जाते हैं,
कब छूट जाते हैं..
कुछ रिश्ते अपनी उम्र लेकर आते हैं |
कुछ अजीब से होते हैं ये रिश्ते,
बेवजह ही उलझते हैं,
बेवजह ही सुलझते हैं |
पूरे होकर भी अधूरे से,
कुछ अधूरे से पर पूरे से |
कभी बहते हैं गालों पर आंसूं से,
कभी खिलते हैं होठों पर मुस्कान से,
कुछ रिश्ते अपनी उम्र लेकर आते हैं |
आते हैं दबे पाँव,
न कोई दस्तक, न कोई आहट..
हम मशरूफ ही रहते हैं
इनके साथ कल पिरोने में,
पता नहीं चलता रेत की तरह,
कब हाथों से फिसल जाते हैं ,
पलक झपकते ही बीता पल बन जाते हैं..
हाँ…कुछ रिश्ते अपनी उम्र लेकर आते हैं |
Ati sundar…….
Dhanyawad Sir
उत्तम सृजन
Thank you
behad khoobsoorat………………
Thanks sir
सुन्दर रचना
सचमुच रिश्तों की एक उम्र ही होती है
जिन्दगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी।
Thank you so much
Rishtey waqt ki myad le kar shuru hotey hain aur kyun hi myad puri hui, apni rah le lete hain,
Aur hum khare khare umr ke chadav ka utaar dekhtey rehten hain.
Mere paas aao jaise bimb nahin
Magar aapki kavitayen mun ko chooti guzarti hai, jaise behti nadi si
Thanks soo much
Jyun