ज़िन्दगी इतनी बड़ी पहेली न होती….गर कवि न होता….सीधा न सोचता न सोचने देता….अच्छी भली राहों को ऊबड़ खाबड़ कर देगा…साफ़ पगडंडियों पे कांटे उगा देगा…न जाने दिमाग कैसा पाया है….चाँद में जबरदस्ती महबूब बिठाया है….गर उसकी कविता नहीं सुनी तो…उसी चाँद को आग का शोला दिखाया है…न जाने क्या सोचता है क्यूँ भरमाया है….कभी इसका संग न करना….जीवन यह पहेली तेरी बना देगा वरना….तीन दिन पहले कि मैं बात बताऊँ…आसमान से आग बरस रही थी…सूर्य देव को बहुत तेज़ बुखार था…बदन सारा उसका तप रहा था…कहीं परिंदा भी नज़र न आ रहा था…पर मेरा कवि मित्र….महबूबा की सोच में डूबा…मस्त झूमता जा रहा था…मुझसे रास्ते में टकरा गया था…इस से पहले मैं बच निकलता…बोल पड़ा…आयो शर्मा जी दी ग्रेट…बिला वजह हो रहे फेंट…देखो कितना हसीं मौसम है…फ़िज़ा में खुशबू-ए-आलम है…ठंडी हवाओं से मौसम सुहाना है…बैठिये हमें सुनाना आपको गाना है…सुनते ही बात उसकी ….माथा मेरा भन्ना गया…गर्मी तो पहले ही बहुत थी…मैं और ताप खा गया…बच-बचा के घर आ गया…रात को १०४ डिग्री बुखार में…अस्पताल आ गया…ज़िन्दगी मेरी पहेली बना गया…डॉक्टर और घर वालों के आगे…सवालिया निशाँ मैंने लगा दिया…सब से पहेली पूछता फिरता हूँ…धूप ठंडी कैसे हो सकती है ?-: सी.एम्.शर्मा (बब्बू) :-
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Waah waah. Aapke likhne kaa naya andaaj. Bahut bhadiya.
सोचा अंदाज़ बदल कर देखें…तहदिल आभार आपका…Madhukarji…
वाह क्या बात है बहुत ही खुबसूरत रचना बिलकुल एक अलग ही अंदाज में 👌👌👌👌👌
तहदिल आभार आपका…Bhawanaji….
हा हा हा………………. उम्दा हास्य रचना ………………………. आप जैसे कवी ही ऐसा कमाल कर सकते है, धुप को ठंडी और छाँव को गर्म कर सकते है !!
मैं तो पहेली का जवाब ढूंढ रहा हूँ….हाहाहाहा…तहदिल आभार आपका…. Nivatiyaji…