मैंने सजाया था तुम्हें अपने मुकुट में मान सा लेकिन तुम्हें ना हो सका उसका जरा भी भान साअब क्या करे कोई तुम्हारी सोच तो बदली नहींतुमको भी साथी चाहिए एक जादूगर धनवान सासोचा बहुत रोका बहुत पर फिर भी देखो ना थमाआज भी उठता है दिल में एक बड़ा तूफान सा देखते हो क्या मकां ये इसमें कोई घर नहीं एक खंडहर है फकत टूटा हुआ वीरान सा दौलतें जग की मिलें पर ना मिले गर साथिया मधुकर बना रहता है फिर इंसान इक अनजान साशिशिर मधुकर
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behad khoobsoorat……………
Tahe dil se shukriya Babbu Ji…………….
क्या बात है ………………बहुत अच्छे बधाई आपको …………………………………..जिस रफ़्तार से कलम चल रही है अभी तो दो तीन किताबो का मसौदा तैयार हो गया होगा ……. हा हा हा !!
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji. Appane sahi kaha. ek kitaab Tadap (Gajal Sangrah) lagbhag 330 gajalo ki chap rahi hai.